Dua e Ashura in Hindi: अहमियत, फ़ज़ीलत और पूरा वज़ीफ़ा

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अशूरा (10 मुहर्रम) इस्लामी कैलेंडर में एक बेहद अहम दिन माना जाता है। इसे सिर्फ़ इतिहास से जोड़कर देखना काफ़ी नहीं है, बल्कि इसमें गहरी रूहानी (spiritual) अहमियत भी छिपी हुई है। इस दिन रोज़ा रखने से लेकर, सदक़ा देने और खास दुआ पढ़ने जैसी तमाम इबादतें की जाती हैं। इन्हीं में से एक अहम दुआ है – दुआ-ए-अशूरा। इस लेख में हम Dua e Ashura in Hindi को विस्तार से समझेंगे, इसकी فضیلت (फ़ज़ीलत) जानेंगे और यह भी जानेंगे कि इसे कैसे और कब पढ़ना चाहिए, ताकि हमारी इबादत और भी मुकम्मल हो सके।


1. अशूरा का एहमियत (Ashura ka ahmiyat)

1.1 ऐतिहासिक और रूहानी पहलू

  1. हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) और फिरौन का वाक़िया
    इस्लामी रिवायतों के मुताबिक़, इसी दिन अल्लाह ने हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) और बनी-इसराइल को फिरौन से आज़ादी दिलाई थी। जब रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मदीना तशरीफ़ लाए, तो उन्होंने यहूदियों को 10 मुहर्रम के दिन रोज़ा रखते देखा। कारण पूछने पर मालूम हुआ कि वे इस दिन को हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) की निजात (बचाव) की याद में रोज़ा रखते हैं। तब रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया कि “हम हज़रत मूसा के ज़्यादा हक़दार हैं” और इसी वजह से मुसलमानों में भी 10 मुहर्रम का रोज़ा रखने की सुन्नत आई।
  2. करबला का वाक़िया
    10 मुहर्रम को करबला का दर्दनाक हादसा भी पेश आया, जिसमें रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के नवासे हज़रत इमाम हुसैन (रज़ियल्लाहु अन्हु) और उनके साथियों ने हक़ और इंसाफ़ की ख़ातिर अपनी जानों की क़ुर्बानी दी। यह वाक़िया हमें हक़, सच्चाई और सब्र पर क़ायम रहने का सबक़ देता है।
  3. रूहानी अहमियत
    अशूरा के दिन रोज़ा रखना, सदक़ा देना, दुआ पढ़ना और नेक अमल करना—all ये काम इंसान की रूह को पाक करने और अल्लाह का क़ुर्ब हासिल करने के मक़सद से किए जाते हैं।

2. दुआ-ए-अशूरा की फज़ीलत (Dua e Ashura ke fayde)

2.1 हदीस और इस्लामी मन्साब (स्रोत)

  • दुआ-ए-अशूरा को पढ़ने की रिवायत तमाम इस्लामी तारीख़ी और रूहानी किताबों में मिलती है। हालाँकि मुख्य रूप से अशूरा के दिन रोज़ा रखने पर सबसे ज़्यादा ज़ोर दिया गया है (सहीह बुख़ारी, सहीह मुस्लिम जैसी हदीसों में ज़िक्र मिलता है), लेकिन दुआ-ए-अशूरा पढ़ना भी बुज़ुर्गों और उलमा के नज़रिए में मुफ़ीद माना जाता है।
  • इसे पढ़ने से अल्लाह की रहमत, मग़फ़िरत (गुनाहों की माफ़ी) और हिफ़ाज़त की उम्मीद की जाती है। साथ ही, यह दिन ख़ास होने की वजह से दुआ का क़ुबूलियत का वक्त (acceptance) भी माना जाता है।

2.2 दुआ-ए-अशूरा पढ़ने के फ़ायदे

  1. गुनाहों से तौबा और मग़फ़िरत: ईमानदारी से तौबा करने और दुआ माँगने पर अल्लाह गुनाहों को माफ़ फ़रमा देता है।
  2. रूहानी ताक़त: दुआ-ए-अशूरा के अल्फ़ाज़ (शब्द) इंसान को अल्लाह की याद दिलाते हैं, जिससे ईमान मज़बूत होता है।
  3. हिफ़ाज़त और बरकत: बहुत-से मुसलमान मानते हैं कि अशूरा के दिन की इस दुआ में बरकत और हिफ़ाज़त का पैग़ाम है, जो हमें बाहरी और अंदरूनी (नफ़्सी) मुश्किलों से बचाती है।

3. दुआ-ए-अशूरा (Dua e Ashura in Hindi) – अरबी, तर्जुमा व मतलब

नीचे दुआ-ए-अशूरा का मशहूर मजमून (टेक्स्ट) दिया जा रहा है। अलग-अलग रिवायतों में हल्का-फुल्का फ़र्क़ हो सकता है, लेकिन यह सबसे आम और मक़बूल सूरत मानी जाती है:

3.1 अरबी मजमून (Arabic Text)

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيمِ
اَللَّهُمَّ أَنْتَ اللّٰهُ الْأَزَلِيُّ الْقَدِيمُ، هٰذَا عَامٌ جَدِيدٌ، قَدْ أَقْبَلَ وَنَحْنُ عَبِيدُكَ فِيهِ، فَأَسْأَلُكَ فِيهِ الْعِصْمَةَ مِنَ الشَّيْطَانِ وَأَوْلِيَائِهِ، وَالْعَوْنَ عَلَى هٰذِهِ النَّفْسِ الْأَمَّارَةِ بِالسُّوءِ، وَالِاشْتِغَالَ بِمَا يُقَرِّبُنِي إِلَيْكَ، يَا كَرِيمُ، يَا ذَا الْجَلَالِ وَالْإِكْرَامِ، يَا رَحْمَانُ يَا رَحِيمُ.

3.2 तर्जुमा (Transliteration)

Bismillāhir-Raḥmānir-Raḥīm
Allāhumma anta-llāhul-azalīyul-qadīm, hādhā ‘āmun jadīdun qad aqbala wa naḥnu ‘abīdaka fīhi,
fa as’aluka fīhi al-‘iṣmata min ash-shayṭāni wa awliyā’ihi,
wal-‘awna ‘alā hādhihi an-nafsil-ammārati bis-sū’,
wal-ishtighāla bimā yuqarribunī ilayka,
yā Karīm, yā Dhāl-Jalāli wal-Ikrām,
yā Raḥmān, yā Raḥīm.

3.3 हिंदी अनुवाद (Hindi Translation)

“अल्लाह के नाम से शुरू, जो रहमान और रहीम है।
ऐ अल्लाह! तू ही क़दीम (शुरुआत से भी पहले मौजूद) और अज़ली (हमेशा रहने वाला) है। ये नया साल (मुहर्रम) हमारे सामने आया है और हम तेरे बंदे इसमें दाख़िल हो रहे हैं।
मैं तुझसे इस साल में शैतान और उसके साथी-कारिंदों से हिफ़ाज़त की दुआ करता हूँ,
और अपनी नफ़्स-ए-अम्मारा (बुराई की तरफ़ उकसाने वाली नफ़्स) पर क़ाबू पाने में मदद माँगता हूँ,
और ये भी माँगता हूँ कि तू मुझे ऐसे कामों में मशग़ूल रख, जो मुझे तेरा क़ुर्ब (नज़दीकी) दिलाएं।
ऐ करीम, ऐ ज़ुल-जलाल वल-इकराम, ऐ रहमान, ऐ रहीम।”

Dua E Ashura In Arabic Text
Dua E Ashura In Hindi Transliteration

4. दुआ-ए-अशूरा का मतलब और अहम सीख

  1. अल्लाह की अज़मत (महानता) का इक़रार
    दुआ की शुरुआत अल्लाह की तारीफ़ से होती है, जो हमेशा से रहा है और हमेशा रहेगा। इस एहसास से बंदे के दिल में विनम्रता और ख़ुशी आती है।
  2. नया साल, नई उम्मीद
    यहाँ नया साल या मुहर्रम की शुरुआत को एक नए मौक़े के तौर पर देखा जाता है, जिसमें इंसान अल्लाह की तरफ़ वापस आने और अपनी ग़लतियों से सबक़ लेने का इरादा करता है।
  3. शैतानी असर से बचाव
    दुआ में सबसे पहले अल्लाह से शैतान और बुरे रास्तों से हिफ़ाज़त की गुज़ारिश की गई है। इससे पता चलता है कि इंसानी कमज़ोरियों से बचने के लिए अल्लाह की मदद कितनी ज़रूरी है।
  4. नफ़्स की इस्लाह (सुधार)
    हमारी नफ़्स अक्सर हमें बुरी आदतों की तरफ़ ले जाना चाहती है। इस दुआ में अल्लाह से मदद माँगी गई है ताकि हम अपने अंदर के बुरे ख़यालात और इच्छाओं पर क़ाबू पा सकें।
  5. अल्लाह की ख़ुशनूदी हासिल करना
    आख़िर में, दुआ का मक़सद उन कामों में मग़न (व्यस्त) रहना है, जो हमें अल्लाह का क़ुर्ब देते हैं—यानी नमाज़, रोज़ा, सदक़ा, नेक काम, और लोगों की भलाई।

5. दुआ-ए-अशूरा कब और कैसे पढ़ें? (Ashura ki dua)

5.1 अशूरा के दिन की अहमियत

  • तारीख़: अशूरा 10 मुहर्रम को मनाया जाता है। अक्सर मुसलमान 9 और 10 या 10 और 11 मुहर्रम को रोज़ा रखते हैं, ताकि दूसरी क़ौमों की नक़ल से अलग रहें और ज़्यादा सवाब (पुण्य) भी हासिल हो।
  • ज़िक्र और दुआ: अशूरा के रोज़े के साथ-साथ, इस दिन दुआ पढ़ना, कुरआन की तिलावत (पठन), सदक़ा, और सलात-ए-नफ़्ल (नफ़्ल नमाज़ें) करना भी फ़ज़ीलत रखता है।

5.2 दुआ-ए-अशूरा पढ़ने का तरीक़ा

  1. नीयत की शुद्धता: सबसे पहले अपनी नीयत साफ़ करें, यानी सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा (ख़ुशनूदी) पाने के लिए दुआ करें।
  2. वुज़ू करें: पाकीज़गी (पारिशुद्धता) इबादत का अहम हिस्सा है। वुज़ू से मन में भी सुकून आता है।
  3. ख़ामोश और पाक जगह चुनें: कोशिश करें कि टीवी, मोबाइल, या अन्य शोर-शराबे से दूर रहकर दुआ पढ़ें।
  4. अरबी मजमून पढ़ें: अरबी में दुआ पढ़ें, साथ ही तर्जुमा समझते चलें।
  5. मतलब पर ग़ौर करें: हर लाइन पर गौर करें कि आप अल्लाह से क्या माँग रहे हैं।
  6. अंत में अपनी दुआ माँगें: दुआ-ए-अशूरा के बाद अल्लाह से अपनी ज़रूरतों, गुनाहों की माफ़ी, और नेक रास्ते की हिदायत मांगें।

6. अशूरा का ऐतिहासिक संदर्भ (हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) और करबला)

  1. हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) का वाक़िया
    जैसा कि ऊपर ज़िक्र हुआ, हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) और बनी-इसराइल को फिरौन से निजात इसी दिन मिली थी। अल्लाह ने समुंद्र को दो हिस्सों में बाँट दिया और फिरौन की फ़ौज डूब गई, जबकि मूसा (अलैहिस्सलाम) और उनके साथी सलामत पार हो गए।
  2. करबला का सबक
    करबला में इमाम हुसैन (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने ज़ुल्म और नाइंसाफ़ी के आगे झुकने से बेहतर क़ुर्बानी देना पसंद किया। यह सबक़ है कि हमें हक़ और इंसाफ़ के रास्ते पर डटे रहना चाहिए, चाहे हालात कितने भी मुश्किल हों।

7. अशूरा के दिन की दीगर इबादतें (Ashura ka roza और अन्य अमल)

  1. रोज़ा (Ashura ka roza)
    • रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अशूरा के रोज़े को लेकर फ़रमाया कि यह पिछले साल के छोटे गुनाहों की मग़फ़िरत का बाइस (कारण) बनता है (सहीह मुस्लिम)।
    • अक्सर 9 और 10 या 10 और 11 मुहर्रम को रोज़ा रखने की ताक़ीद की गई है।
  2. सदक़ा
    • इस दिन ग़रीबों और ज़रूरतमंदों की मदद करना, खाना खिलाना, या जो भी मुमकिन हो, सदक़ा देना बहुत सवाब का काम है।
    • भारतीय मुसलमान समुदाय में, अक्सर परिवार के लोग मिलकर आस-पड़ोस के ज़रूरतमंदों की मदद करते हैं, जो सौहार्द की मिसाल है।
  3. दुवाएँ और नफ़्ल नमाज़
    • कुरआन की तिलावत, दुरूद शरीफ़ (रसूलुल्लाह पर सलाम भेजना), और दूसरे नफ़्ल (स्वयंसेवी) इबादतों का एहतिमाम (ख़ास ध्यान) करना इस दिन बरकत लाता है।
    • अपने रब से निजी दुआएँ माँगना भी न भूलें।
  4. आत्मिक चिंतन
    • अशूरा का दिन हमें अतीत के सबक़ याद दिलाता है—हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) की निजात और इमाम हुसैन (रज़ियल्लाहु अन्हु) की क़ुर्बानी।
    • यह दिन हमें हक़ और सब्र का रास्ता अख़्तियार (अपनाने) करने को प्रेरित करता है।

8. नतीजा (Conclusion): अशूरा को ख़ूबसूरती से मनाने की दावत

अशूरा हमें सीख देता है कि कैसे अल्लाह पर भरोसा रखते हुए हम ज़िंदगी की तमाम मुश्किलों का सामना कर सकते हैं। Dua e Ashura in Hindi का मक़सद सिर्फ़ दुआ के शब्दों को समझना नहीं, बल्कि इस दिन की रूहानी बरकतों (spiritual blessings) को हासिल करना है। जब हम इस दुआ के अल्फ़ाज़ पर ग़ौर करते हैं, तो हमें अपनी ज़िंदगी में अल्लाह से क़ुरबत पाने की ख़्वाहिश पैदा होती है।

  • रोज़ा, सदक़ा, और दुआ जैसे नेक अमल हमें बतौर इंसान निखारते हैं और रब की रहमत की तरफ़ ले जाते हैं।
  • अशूरा का रोज़ा रखने से लेकर दुआ-ए-अशूरा पढ़ने तक, हर अमल एक मौक़ा है अल्लाह के क़रीब आने का।
  • हमें चाहिए कि इस मुहर्रम में हम भी अपने अंदर अमली बदलाव लाएँ—चाहे वह ग़ुस्सा कम करना हो, ग़रीबों की मदद करना हो, या फिर अपनी रोज़मर्रा की इबादत को बेहतर बनाना हो।

अल्लाह हम सबको हिदायत दे और हमारे रोज़ों, दुआओं और नेक अमलों को क़ुबूल फ़रमाए। आमीन


उम्मीद है कि यह लेख आपको अशूरा की अहमियत समझने और दुआ-ए-अशूरा को सही तरीक़े से पढ़ने में मदद करेगा। अल्लाह हमें इस पाक दिन की बरकतों से मालामाल करे और हमारे गुनाह माफ़ करके हमें नेक राह पर चलने की तौफ़ीक़ दे। आमीन

Rokaiya
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