
नमाज़ के बाद की दुआ | Namaz Ke Baad Ki Dua
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नमाज़ के बाद की दुआ हमारे नबी मुहम्मद ﷺ की सुन्नत है। यह मुबारक दुआ हमें अल्लाह तआला की अज़मत और उनकी रहमत की याद दिलाती है। सहीह मुस्लिम शरीफ़ में मौजूद इस दुआ को हर नमाज़ के बाद पढ़ना चाहिए। आइए जानते हैं कि इस दुआ को कैसे पढ़ें, इसका क्या मतलब है और इसकी क्या फ़ज़ीलत है।
दुआ का अरबी पाठ (अरबी में पढ़ें)
اللهم أنت السلام ومنك السلام، تباركت يا ذا الجلال والإكرام
कैसे पढ़ें?
दुआ को इस तरह पढ़ें:
“अल्लाहुम्मा अन्तस्-सलामु व मिन्कस्-सलाम, तबारक्ता या ज़ल्-जलाली वल्-इकराम”
(रोमन में पढ़ने के लिए: “Allahumma antas-salaamu wa minkas-salaam, tabaarakta yaa zal-jalaali wal-ikraam”)
दुआ का मतलब
हिंदी में:
“ऐ अल्लाह! तू ही सलामती है और तेरी तरफ से ही सलामती आती है। तू बरकत वाला है, ऐ बुज़ुर्गी और इज़्ज़त वाले!”
अंग्रेजी में (English meaning):
“O Allah! You are Peace and from You comes peace. You are blessed, O Owner of Majesty and Honor!”
कब पढ़ें?
- हर फर्ज़ नमाज़ के बाद।
- जब आप सलाम फेर लें।
- सुबह की नमाज़ के बाद।
- ज़ोहर की नमाज़ के बाद।
- असर की नमाज़ के बाद।
- मगरिब की नमाज़ के बाद।
- इशा की नमाज़ के बाद।
पढ़ने का तरीका
- नमाज़ का सलाम फेरने के बाद।
- पहले तीन बार “अस्तग़फिरुल्लाह” पढ़ें।
- फिर यह दुआ पढ़ें।
- क़िब्ला की तरफ मुंह करके बैठे रहें।
- दिल से पढ़ें और मायने समझें।
इस दुआ की फ़ज़ीलत
- यह हुज़ूर ﷺ की सुन्नत है।
- दिल को सुकून मिलता है।
- अल्लाह की रहमत मिलती है।
- गुनाहों की माफी मिलती है।
- रिज़्क में बरकत होती है।
याद रखने के लिए आसान तरीका
- पहले अरबी में याद करें।
- फिर मतलब समझें।
- रोज़ पढ़ने की आदत डालें।
- आहिस्ता-आहिस्ता पढ़ें।
आम सवाल
सवाल 1: अगर दुआ याद न हो तो क्या करें?
- किताब से देख कर पढ़ सकते हैं।
- धीरे-धीरे याद कर सकते हैं।
सवाल 2: क्या यह दुआ सिर्फ फर्ज़ नमाज़ के बाद ही पढ़ें?
- हाँ, यह दुआ फर्ज़ नमाज़ के बाद पढ़ी जाती है।
सवाल 3: क्या इसे ज़ोर से पढ़ना चाहिए?
- आहिस्ता आवाज़ में पढ़ें।
यह भी याद रखें
- वुज़ू की हालत में रहें।
- खुशू और खुज़ू के साथ पढ़ें।
- दिल से पढ़ें।
- बच्चों को भी सिखाएं।
नमाज़ के बाद की और दुआएं
- आयतुल कुर्सी।
- सूरह इख़लास।
- सूरह फलक़।
- सूरह नास।
दुआ का असर
जब हम यह दुआ पढ़ते हैं, तो अल्लाह तआला हमें:
- अपनी हिफाज़त में रखते हैं।
- हमारी मुश्किलें आसान करते हैं।
- हमारी दुआएं क़बूल करते हैं।
- हमारे दिल को सुकून देते हैं।
खास बात
नमाज़ के बाद की यह दुआ इतनी छोटी है कि इसे याद करने में सिर्फ कुछ मिनट लगते हैं, लेकिन इसका सवाब बहुत ज़्यादा है। इसलिए इसे ज़रूर याद करें और पढ़ें।
अल्लाह तआला हम सब को इस पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए। आमीन।
नोट: यह दुआ सहीह मुस्लिम में मौजूद है और हुज़ूर ﷺ की सुन्नत है।